Wednesday, July 15, 2009

चप्पल फाड़ के

ललिताजी बड़ी ही मजेदार महिला थी .हिन्दी तोह काफी अच्छी बोल लेती थी ...लेकिन जब मुहावरों की बारीआती थी ..वहां गड़बड़ कर दे ती.वेह दक्षिण भारत से थी .काफी गरीब घर की थी .जब शादी हुई तोह वह दिल्ली आ कर बस गई ...और नोकरी भी करने लगी ...हमारी उनके साथ अच्छी दोस्ती हो गई।
एक दिन हम लोग उनके घर पहुंचे .वह बड़ी ही कुश नजर आई.माँऔर ललिताजी काफी बातें करने लगे ..तभी उन्होंने बताया की उन्क्की तरक्की हो गई हे और तनखा भी बड गई (जितना उन्होंने सोचा था उस से कई ज्यादा ).वह खुश थी की अब वह पैसे अपने घरवालोंको भी भेज सकेंगी .तब माँ ने कहा"ललिता यह सब भगवन की कृपा है की तुम्हारी सारी इछा पूरी हो गई ."तोह ललिताजिभी माँ की हाँ में हाँ मिलाती रही और बाद में कहा "हाँ भाभी ...जब भगवान देता है तोह चप्पल फाड़ के देता है "....................................????????????????पहले तोह हमे पता नही चला की वह क्या बोली.....लेकिन कुछ ही क्षण में हम लोग टहाक्का मार कर हंसने लगे .बिचारी कहना चाहती थी की'"जब भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है"लेकिन छप्पर की जगह चप्पल निकल गया....हाहाहा .....

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